हमारे समाज में किन्नरों को दुआ और बददुआ के नजरिए से देखा जाता है। जिन्हे ट्रांसजेंड या थर्ड जेंडर के नाम से भी जाना जाता है। भारतीय समाज में किन्नरों का इतिहास बहुत ही पुराना है जिनका जिक्र महाभारत से राजा महाराजाओं तक मिलता है। मुगल काल के दौरान हराम में रानियों की देखभाल के लिए किन्नरों को रखा जाता था।
लेकिन क्या अपने कभी सोचा है की किन्नर की पहचान केसे की जाती है और किस उम्र में उनके अलग होने का पता चलता है। अगर आप भी ये जानना चाहते है तो अंत तक जरूर पढ़िए।
किन्नर का जीवन हमारे समाज और रहन सहन से बिलकुल अलग होता है। जिसे समझ पाना एक आम इंसान के समझ से बाहर है। पाकिस्तान बांग्लादेश और नेपाल जैसे एशियाई डी शो में इनकी अलग पहचान है। जो टोलियों में रहते है और महिलाओं का रूप धारण करते है। ये तोलिया बचे के जन्म शादी बियाह पर लोगो के घरों पर जाति है और नाच गाना करती है और दुआ देती है।
हालांकि एशिया के अलावा भी किन्नर पूरी दुनिया में पाए जाते है। पर उनका रहन सहन था से बिलकुल अलग होता है। वह नाच गाना कर के पैसा नही कमाते जबकि बिल्कुल ही साधारण जीवन जीते है। वहा के किन्नर बच्चो को गोद लेते है और अपना वंश आगे बढ़ते है। जबकि एशियाई देशों में एक उम्र के बाद उनकी पहचान होती है और फिर उन्हें टोली में शामिल कर लिया जाता है।
ऐसे में सवाल उठता है की नवजात बच्चे की पहचान किन्नर के रूप में केसे की जाती है? आपको बता दे की भारत में जन्म के समय किन्नरों की कुल आबादी में से 3% ही होती है। जबकि असल में उनकी आबादी इन आंकड़ों से कई ज्यादा है।
यूं तो बच्चे को देख कर यह बता पाना मुश्किल होता है की वह किन्नर है या नही। हालांकि बीतते समय के समय के साथ जब बच्चे के शारीरिक अंग विकसित होते है तो बताना आसान हो जाता है की वह किन्नर है या नही। क्युकी उसके अंग न तो पुरुष की तरह होते है न ही स्त्री की तरह। इसे में वह बचा किन्नर कहलाता है।
किन्नर भी 2 प्रकार के होते है। एक पुरुष किन्नर और दूसरा स्त्री किन्नर । पुरुष किन्नर पुरुष की तरह दिखते है लेकिन और उनका अंग सही से विकसित नहीं हो पाता इसलिए वह किन्नर का रूप धारण कर लेते है।
इसी तरह महिला किन्नर भी दिखती तो महिला की तरह है परंतु उनका भी अंग सही से विकसित नहीं होता है। महिला किन्नर में आम महिलाओं की तरह मासिक चक्कर नही चलता है। इसलिए वह बच्चे को जन्म देने में भी असमर्थ होते है।
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