“बजट” वर्ष के लिए देश की बैलेंस शीट है। बजट की योजना है कि अगले वित्तीय वर्ष में अपने देश पास कितना पैसा होगा और इसमें से कितना खर्च किया जाएगा।
बजट में क्या-क्या होता है?
पहले भाग में, वित्त मंत्री देश की वर्तमान स्थिति के बारे में बताते हैं कि जीडीपी क्या है, इस साल सरकार को कितना पैसा इकट्ठा होने की उम्मीद है और विभिन्न क्षेत्रों के लिए आने वाले वित्तीय वर्ष के लिए नई योजनाओं खर्च करनेकी की घोषणा करता है। इनमें कृषि, रक्षा, स्वास्थ्य, शिक्षा, बुनियादी ढांचा, लघु और मध्यम उद्यम, बैंकिंग और वित्त, स्टार्ट-अप, पूंजी विभाग शामिल हैं।
पहला भाग मौजूदा वर्ष के लिए सरकार के विनिवेश लक्ष्यों, अनुमानित राजकोषीय घाटे और सरकार कितना उधार लेगी, के बारे में जानकारी प्रदान करता है।
दूसरा भाग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों से संबंधित है। इनमें इनकम टैक्स स्लैब में बदलाव, कॉर्पोरेट टैक्स, कैपिटल गेन्स टैक्स, सीमा शुल्क और उत्पाद शुल्क शामिल हैं।
लेकिन इसमें जीएसटी शामिल नहीं है। इस पर जीएसटी काउंसिल फैसला करती है। पार्ट बी के बाद, एक अनुबंध है जिसमें सरकार के अतिरिक्त बजटीय संसाधनों के बारे में जानकारी है।
बजट एट ए ग्लेंस नामक एक दस्तावेज में आगामी वित्तीय वर्ष के उद्देश्य शामिल हैं। यानी टैक्स रेवेन्यू, नॉन टैक्स रेवेन्यू, कैपिटल एक्सपेंडिचर आदि। यह राजकोषीय घाटे और मामूली सकल जीडीपी लक्ष्यों का भी विवरण देता है। इसके अलावा, यह राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को केंद्र से महत्वपूर्ण योजनाओं के लिए धन प्राप्त करेगा।
तो बजट याने एक विवरण होता ही जिसमे कहा और कितना खर्च किया जाएगा ये नमूद किया होता है।

सरकार को अपनी आमदनी कहां से मिलती है?
- आयकर
- निगमित कर
- जीएसटी
- उत्पाद शुल्क
विनिवेश - निजीकरण
- बिजली, फोन, गैस बिल में हिस्सेदारी
- रॉयल्टी और लाइसेंस फीस
- राज्य सरकारों को ऋण पर ब्याज
- रेडियो और टीवी लाइसेंस
- सड़कों और पुलों पर टोल
- पासपोर्ट – वीजा शुल्क
- सरकारी कंपनियों के मुनाफे में हिस्सेदारी
- रिजर्व बैंक से धन
इन सभी तरीकों से सरकार को धनराशि मिलता है।
बजट भाषण इस पूरी प्रक्रिया की शुरुआत है। क्योंकि इस वित्त विधेयक को पेश करने के बाद, इसे लोकसभा में अनुमोदित करना होगा। इसके बाद यह राज्यसभा जाता है। वहां इस पर चर्चा होती है, वित्त मंत्री सवालों के जवाब देते हैं। बजट को 31 मार्च से पहले अनुमोदित किया जाना है, जिसका अर्थ है कि यह 1 अप्रैल से नए वित्तीय वर्ष में लागू होगा।